Varsha ki kalpana
वर्षा की imagination
कभी कुंची को फेरा एक और
Dusra prahaar dusri aur
Rachana hui Ek aakar ķi
Abbhut ujjawal chahun aur
Sakhiyon se dur
कुछ सोच रही हूँ मैं
Apni soch ko
Kalpana ki kunchi se
Uker rahi hoon main
Saath mangA tha sakhiyon Se
घूमती रही वे आधुनिक मशीनो में
तुम साथ दो या na दो मेरा
अपने सृजन से अपनी हस्ती बनाउंगी मैं
Kisi pe ashrit nahin main
अपना अस्तित्व खुद बनाउंगी मैं
रंगो से इस संसार को निखारा है
उनको रंगो मैं रंग जाऊंगी मैं
कल्पना को रंगो मैं उतारा है अब तक
अब रंगो जीवन को मैं उतारूंगी मैं
असीम प्रसन्नता का एहसास करूंगी
साकार कल्पना देख मुस्कुराउंगी मैं
अपने जीvant होने के एहसास पे
खुले बालों को लहराउंगी मैं
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